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पाषाण युग के महत्वपूर्ण नोट्स | भारतीय इतिहास

by PardeepYadav

पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरनार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि। यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है -

  1. पुरा पाषाण काल ( Paleolithic Age )
  2. मध्य पाषाण काल ( Mesolithic Age )
  3. नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल ( Neolithic Age )


1. पुरा पाषाण काल

यूनानी भाषा में Palaios को प्राचीन एवं Lithos को पाषाण कहा जाता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाणकाल) शब्द बना | यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है।

अभी हाल में महाराष्ट्र के 'बोरी' नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर 'मनुष्य' की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है।

इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो Negreto जाति के थे। भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं। यह अवस्थाएं हैं-


पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल :

1. पहलगाम - कश्मीर

2. वेनलघाटी - इलाहाबाद ज़िले में, उत्तर प्रदेश

3. भीमबेटका और आदमगढ़ - होशंगाबाद ज़िले में मध्य प्रदेश

4. 16 आर और सिंगी तालाब - नागौर ज़िले में, राजस्थान

5. नेवासा - अहमदनगर ज़िले में महाराष्ट्र

6. हुंसगी - गुलबर्गा ज़िले में कर्नाटक

7. अट्टिरामपक्कम -तमिलनाडु


पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं -

  1. निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000-1,00,000 ई.पू.)
  2. मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000- 40,000 ई.पू.)
  3. उच्च पुरापाषाण काल (40,000- 10,000 ई.पू.)
  • औजार - हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार/औजार के रूप मे उपयोग - भाला, कुल्हाड़ी, धनुष, तीर, सुई, गदा
  • अर्थव्यवस्था - शिकार एवं खाद्य संग्रह
  • शरण स्थल - अस्थाई जीवन शैली - गुफ़ा,
  • समाज - अस्थाई झोपड़ीयां मुख्यता नदी एवं झील के किनारे 25-100 लोगो का समुह (अधिकांशतः एक ही परिवार के सदस्य)


2. मध्य पाषाण काल

इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश एवं मैसूर में पाये गये हैं।

मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे।


मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण स्थल:

1. बागोर - राजस्थान

2. लंघनाज - गुजरात

3. सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा - उत्तर प्रदेश

4. भीमबेटका, आदमगढ़ - मध्य प्रदेश

  • औजार - हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार/औजार के रूप मे उपयोग- धनुष, तीर
  • अर्थव्यवस्था - मछली के शीकार एवं भंडारण के औजार, नौका
  • समाज - कबिले एवं परिवार समुह
  • धर्म - मध्य पुरापाषाण काल के आसपास मृत्यु पश्चात जीवन में विश्वास के साक्ष्य कब्र एवं अन्तिम संस्कार के रूप मे मिलते है।


3. नव पाषाण काल

साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं - कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।

  • औजार - हाथ से बने अथवा प्राकृतिक वस्तुओ का हथियार/औजार के रूप मे उपयोग- चिसल (लकड़ी एवं पत्थर छिलने के लिये),खेती मे प्रयुक्त होने वाले औजार, मिट्टी के बरतन, हथियार
  • अर्थव्यवस्था - खेती, शिकार एवं खाद्य संग्रह, मछली का शिकार और पशुपालन
  • शरण स्थल - खेतों के आस पास बसी छोटी बस्तीयों से लेकर काँस्य युग के नगरों तक
  • समाज - कबीले से लेकर काँस्य युग के राज्यो तक


ताम्र-पाषाणिक काल

जिस काल में मनुष्य ने पत्थर और तांबे के औज़ारों का साथ-साथ प्रयोग किया, उस काल को 'ताम्र-पाषाणिक काल' कहते हैं। सर्वप्रथम जिस धातु को औज़ारों में प्रयुक्त किया गया वह थी - 'तांबा'। तांबे का सर्वप्रथम प्रयोग क़रीब 5000 ई.पू. में किया गया।

भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं।

इस काल में लोग गेहूँ, धान और दाल की खेती करते थे। पशुओं में ये गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर और ऊँट पालते थे। 'जोर्वे संस्कृति' के अन्तर्गत एक पांच कमरों वाले मकान का अवशेष मिला है। जीवन सामान्यतः ग्रामीण था। चाक निर्मित लाल और काले रंग के 'मृद्‌भांड' पाये गये हैं। कुछ बर्तन, जैसे 'साधारण तश्तरियां' एवं 'साधारण कटोरे' महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 'सूत एवं रेशम के धागे' तथा 'कायथा' में मिले 'मनके के हार' के आधार पर कहा जा एकता है कि 'ताम्र-पाषाण काल' में लोग कताई-बुनाई एवं सोनारी व्यवसाय से परिचित थे। इस समय शवों के संस्कार में घर के भीतर ही शवों का दफ़ना दिया जाता था। दक्षिण भारत में प्राप्त शवों के शीश पूर्व और पैर पश्चिम की ओर एवं महाराष्ट्र में प्राप्त शवों के शीश उत्तर की ओर एवं पैर दक्षिण की ओर मिले हैं। पश्चिमी भारत में लगभग सम्पूर्ण शवाधान एवं पूर्वी भारत में आंशिक शवाधान का प्रचलन था।

इस काल के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे। राजस्थान और मालवा में प्राप्त मिट्टी निर्मित वृषभ की मूर्ति एवं 'इनाम गांव से प्राप्त 'मातृदेवी की मूर्ति' से लगता है कि लोग वृषभ एवं मातृदेवी की पूजा करते थे। तिथि क्रम के अनुसार भारत में ताम्र-पाषाण बस्तियों की अनेक शाखायें हैं। कुछ तो 'प्राक् हड़प्पायी' हैं, कुछ हड़प्पा संस्कृति के समकालीन हैं, कुछ और हड़प्पोत्तर काल की हैं। 'प्राक् हड़प्पा कालीन संस्कृति' के अन्तर्गत राजस्थान के 'कालीबंगा' एवं हरियाणा के 'बनवाली' स्पष्टतः ताम्र-पाषाणिक अवस्था के हैं। 1,200 ई.पू. के लगभग 'ताम्र-पाषाणिक संस्कृति' का लोप हो गया। केवल ‘जोर्वे संस्कृति‘ ही 700 ई.पू. तक बची रह सकी। सर्वप्रथम चित्रित भांडों के अवशेष 'ताम्र-पाषाणिक काल' में ही मिलते हैं। इसी काल के लोगों ने सर्वप्रथम भारतीय प्राय:द्वीप में बड़े बड़े गांवों की स्थापना की।

ताम्र पाषणिक संस्कृतियां :

1. अहाड़ संस्कृति - लगभग 1700-1500 ई.पू.

2. कायथ संस्कृति - लगभग 2000-1800 ई.पू.

3. मालवा संस्कृति - लगभग 1500-1200 ई.पू.

4. सावलदा संस्कृति - लगभग 2300-2200 ई.पू

5. जोर्वे संस्कृति - लगभग 1400-700 ई.पू.

6. प्रभास संस्कृति - लगभग 1800-1200 ई.पू.

7. रंगपुर संस्कृति - लगभग 1500-1200 ई.पू.


काँस्य युग

औजार - तांबे एवं काँस्य के औजार, मिट्टी के बरतन बनाने का चाक

अर्थव्यवस्था - खेती, पशुपालन, हस्तकला एवं व्यपार


लौह युग

औजार- लोहे के औजार

अर्थव्यवस्था- खेती, पशुपालन, हस्तकला एवं व्यपार

PardeepYadav Pardeep yadav
2018-09-13 14:47:38
पाषाण काल 1. पुरा पाषाण काल 2. मध्य पाषाण काल 3. नव पाषाण काल - सम्पूर्ण जानकारी नोट्स